विवादों का अंत करता फैसला।

विवादों का अंत करता फैसला।
अयोध्या प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट का बहुप्रतीक्षित फैसला।


ठीक उसी दिन जिस दिन पूर्वी जर्मनी और पश्चिम जर्मनी के बंटवारे की दीवार गिरी थी। लगभग पांच शताब्दी का यह पुराना विवाद 134 साल तक लगातार चले कानूनी कार्यवाहियों के पश्चात 09 नवम्बर, 2019 को समाप्त हो गया, ऐसा माना जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस डी0वाई0 चन्द्रचूड, जस्टिस अब्दुल नजीर एवं जस्टिस एसए बोबडे की पीठ ने रामलला की जमीन और मस्जिद को लेकर जिस तरह से संयम बरतते हुए फैसला सुनाया, उस फेसले की जितनी तारीफ की जाए कम है। हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों को संतुष्ट करने वाला फैसला यह कहा जा सकता है, किंतु इन मुद्दों पर अपनी राजनीति की रोटियां सेंकने वाले भी संतुष्ट दिखेंगे, ऐसा पूर्णतया नहीं कहा जा सकता। लेकिन कुल मिलाकर कुछ एक को छोड़कर सभी राजनीतिक दलों ने पार्टीहित से अलग रहकर जिस तरह से देशहित में अपनी प्रतिक्रिया दी है, वह दिखाती है कि देश के इस सबसे संवेदनशील मामले पर पूरा राष्ट्र एक है। जहां एक ओर सवाल हजारों साल से चली आ रही आस्था और विश्वास का था तो दूसरी ओर मालिकाना हक का था।
वह जगह जहां मुस्लिमों ने आजादी के बाद आखिरी बार 16 दिसम्बर, 1949 को जुमे की नमाज पढ़ी थी, जिसे हिन्दू अपने अराध्य देव मर्यादा पुरूषोषत्तम श्री रामचन्द्र जी की सदियों से जन्मस्थली मानता आ रहा है कोे लेकर उठे इस विवाद का अंत सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से मुस्लिम पक्ष के दावे को खारिज करते हुए किया है, उससे पूरे हिन्दू समुदाय में खुशी की लहर दौड़ गयी, मुस्लिम पड़ोसियों ने भी अपने हिन्दू भाईयों को बधाई दी। आस्था और विश्वास जीता तथा तीन महीने के अंदर ट्रस्ट बनाकर उस पर उचित निर्णय लेने का अधिकार केन्द्र सरकार को दिया गया। मुस्लिम पक्ष विवादित स्थल के भीतरी अहाते पर अपना दावा कर रहा था जिसे समय सीमा के बाद पाये जाने पर उच्चतम न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया किंतु विवादों से बचने के लिए उसने सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन अयोध्या में ही उपलब्ध कराने के निर्देश सरकार को दिये, जिससे उम्मीदों के मुताबिक मुस्लिम पक्ष अयोध्या में मस्जिद का निर्माण करा सके।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला वर्तमान परिप्रेक्ष्य मंे बिल्कुल सही लगता है, किन्तु यदि 06 दिसम्बर, 1992 की घटना न हुई होती और बाबरी मस्जिद न ढही होती तब भी क्या माननीय न्यायालय का यही फैसला होता? बहस का यह मुद्दा बन सकता है, किंतु जिस चीज का कोई वजूद न हो शायद उस पर बहस करने का कोई औचित्य नहीं है। फैसला वर्तमान स्थिति पर आया है जिसे हमें सहर्ष स्वीकार किया जाना चाहिए। यदि राजनीतिक परिदृश्य से देखा जाए तो देश में इस मुद्दे का सबसे ज्यादा फायदा जो पार्टी उठा सकती है वह भारतीय जनता पार्टी है। 1989 से पहले यह पार्टी हमेशा हाशिए पर रही है वह चाहे जनसंघ के नाम पर हो या फिर भारतीय जनता पार्टी के नाम पर, किंतु उसके बाद लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे द्धय योद्धओं ने जिस तरह से भारतीय जनमानस की नब्ज पकड़कर राम मंदिर मुद्दे को गर्म हवा दी उसने उसे आज भारतीय राजनीति के शीर्ष पर पहुंचा दिया है और कांग्रेस जो हर बार इस मुद्दे के केन्द्र में रही है चाहे 1949 हो या 1989 हो या फिर 1992 हो, राममंदिर मुद्दा जब जब गरमाया हमेशा कांगे्रस सत्ता में रही किंतु उसके लिए दुखद यह है कि अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि के चलते वह इस मुद्दे को चाहकर भी अपने पक्ष में नहीं मोड़ सकती और संभवतः भारतीय राजनीति की बदलती इस तस्वीर की वजह से आज वह अर्श से फर्श पर पहुंच गयी है। मुस्लिम उसे बाबरी मस्जिद गिरवाने का दोषी मानते हैं तो हिन्दू उसे राम मंदिर बनवाने में कोई रूचि न लेने एवं मुस्लिमवादी दृष्टिकोण अपनाने का दोषी मानते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने सभी राजनीतिक दलों को राममंदिर पर लाभ लेने के प्रयास पर विराम सा लगा दिया है, ऐसा कहा जा सकता है। अब देखना होगा कि 370 और रामजन्मभूमि मुद्दे के अस्तांचल में चले जाने के बाद राजनीतिक दलों के राजनीति का नया मुकाम क्या होता है।
रामजन्मभूमि प्रकरण इतिहास के आइने से
अयोध्या एक ऐसा स्थान, जिसे हिन्दू वाल्मीकि रामायण एवं तुलसीदा द्वारा रामचरित मानस के आधार पर भगवान राम की जन्मस्थली मानते हैं।
1528- कहा जाता है कि मुगलों के आगे हिन्दुओं के मुखर न होने का फायदा तत्कालीन शासक बाबर के सेनापति मीर बाकी ने उठाया एवं हिन्दुओं के इस आस्था स्थल पर मस्जिद का निर्माण कराया, कालांतर में जिसका नाम इतिहास में बाबरी मस्जिद के रूप में दर्ज हुआ।
1853ः- देश में अंग्रेजों का शासन आने के बाद हिन्दू मुखर हुए और उन्होंने अयोध्या में अपने इष्ट देव रामचन्द्र जी के जन्मस्थान पर दावा किया तदुपरान्त अंग्रेजी सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी कर विवादि स्थल अंदर और बाहर हिन्दुओं और मुस्लिम के लिए पूजा तथा नमाज हेतु अलग-अलग व्यवस्था की।
1885ः- निर्माेही अखाड़े के महंत श्री रघुवर दास ने फैजाबाद न्यायालय में राम चबूतरे पर बने अस्थायी मंदिर को पक्का बनाने का अनुरोध किया। इस पर न्यायालय ने माना कि यह स्थल हिन्दुओं के पूजा एवं अर्चना करने की जगह है किन्तु यहां पर पक्का निर्माण नहीं किया जा सकता।
1949ः- 06 दिसम्बर, 1949 को मुस्लिमों ने विवादित ढांचे में आखिरी बार नमाज पढ़ी । 22 दिसम्बर, 1949 को मुख्य गुंबद के नीचे लोगों ने मूर्तियां देंखीं। विवाद बढ़ता देख 29 दिसम्बर, 1949 को मुख्य द्वार पर ताला लगा दिया तथा सरकार द्वारा नियुक्त रिसीवर की देख रेख में मुख्य पुजारी पीछे गेट से आकर पूजा अर्चना किया करते थें।
1950ः- 05 दिसम्बर, 1950 को महंत रामचंद्र परमहंस ने सिविल जज के यहां मुकदमा दायर कर पूजा अर्चना में बाधा न पहुंचाने के लिए मुस्लिम पक्ष पर रोक लगाने की मांग की।
1961ः- 18 दिसम्बर, 1961 को उ0प्र0 केन्द्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मुकदमा दायर कर विवादित जमीन पर मालिकाना हक का दावा किया।
1986ः- फैजाबाद के जिला न्यायाधीश ने स्थानीय अधिवक्ता उमेश पाण्डेय की अर्जी पर विवादित स्थल ताला खोलने का आदेश दिया। मुस्लिमों द्वारा बाबरी एक्शन कमेटी का गठन किया गया।
1989ः- 09 नवम्बर, 1989 को काफी विवादों के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने परिसर में मंदिर निर्माण हेतु शिलान्यास की इजाजत दी जिसे बिहार के अनुसूचित जाति के श्री कामेश्वर चैपाल ने पूर्ण किया।
1990ः- भाजपा के दिग्गज नेता श्री लाल कृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर का संकल्प लेकर 25 दिसम्बर, 1990 को गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक कारसेवा यात्रा आरम्भ की।
1992ः- 06 दिसम्बर, 1992 को अयोध्या पहुंचे हजारों कारसेवकों ने विवादित ढांचे को गिरा दिया। हजारों लोगों पर मुकदमा दर्ज हुआ।
2010ः- 30 सितम्बर, 2010 को उच्च न्यायालय ने तीनों पक्षों श्री रामलला विराजमान, निर्माेही अखाड़ा एवं केन्द्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड में बांटने का निर्देश दिया तथा गुंबद के नीचे जहां मूर्तियां थीं उसे भगवान श्री राम का जन्मस्थान माना।
2019ः- 09 नवम्बर, 2019 को एतिहासिक फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने 2.77 एकड़ जमीन को रामलला का जन्मस्थान मानते हुए उसे रामलला विराजमान को सौंपा तथा मुस्लिमों के लिए अयोध्या में ही पांच एकड़ जमीन मुहैया कराने हेतु सरकार को निर्देशित किया।